ध्यानबिन्दूपनिषत् नोट्स

ध्यानबिन्दूपनिषत्

ध्यानबिंदूपनिषत्

      कृष्ण यजुर्वेद

o  106 मंत्र

      ध्यान योग की महिमा - ध्यान पर्वत के समान विशालकाय, पापको भी नष्ट कर देता है

      नाद का क्रम - बीजाक्षर (३म्) से परे बिंदु और उससे परे नाद है

      उस ना के अक्षर ब्रह्म में लीन होने पर निःशब्द परम पद की प्राप्ति होती है

      अनाहत शब्द से परे जो तत्व है, उसे जो योगी प्राप्त कर लेता है उसके सभी संशय नष्ट हो जाते हैं

      प्रणव रूपी ब्रह्मा का स्वरूप -

o  बाल - 1 लाख भागों में divide किया

o  उस 1 लाख के 1 बाल को 50,000 में

o  50,000 से भी 1 को जितना क्षीण करें - वह निरंजन परमात्मा है

      सब प्राणियों में ब्रह्मा की स्थिति किस प्रकार की है?

o  जैसे पुष्प में गंध

o  दूध में घृत

o  तिल में तेल

o  पत्थर में सोना

      ओ३म् रूपी एकाक्षर ही ब्रह्म है, जो कि सब मुमुक्षुवों का ध्येय है

      प्रणव के 3 अक्षरों में लय प्राप्त होने वाले लो

प्रणव का अंश

लय होने वाले लोक

पृथ्वी अग्नि ऋग्वेद भूः - पितामह (ब्रह्मा)

अंतरिक्ष - वायु - यजुर्वेद - भुवः - विष्णु

म्

द्यौ सूर्य सामवेद - स्वः - महेश्वर

 

      ३म् की विशेषताएं

प्रणव का अंश

वर्ण

संबन्धित गुण

पीत

रजस

शुक्ल

सत्व

म्

कृष्ण

तमस

 

      इस ओंकार के 8 अंग, 4 पैर, 3 स्थान और 5 देवता है

      8 अंग कार, कार, कार, नाद, बिंदु, कलातीत, कालातीतातीत, कला

      4 पाद विश्व, तैजस, प्राज्य, तुर्य

      3 स्थान

o  सत्व, रज, तम

o  जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति

o  स्थूल, सूक्ष्म, कारण

      देवता ब्रह्म, विष्णु, रुद्र, ईश्वर, सदाशिव

      जो ओंकार को नहीं जानता है वह ब्राम्हण नहीं है, जो व्यक्ति 3 स्थान, 3 मार्ग, 3 ब्रह्म, 3 अक्षर, 3 मात्राएं और अर्धमात्रा को जानता है वही ब्रह्मवित् है

      प्रणव की उपमा मुंडकोपनिषद्

प्रणव

धनुष

आत्मा

शर (बाण)

ब्रह्म

लक्ष्य

 

      सभी देव, चराचर रूपी जगत सब ओंकार से उत्पन्न हुआ है

      प्रणव का मात्राओं के अनुसार ज करने का फल

ह्रस्व

1 sec

पापों का नाश

दीर्घ

2 sec

संपत्ति की प्राप्ति

प्लुत

3 sec (अर्ध मात्रा)

मोक्ष की प्राप्ति

 

      भ्रूमध्य में, ललाट में और नासिका मूल में एक अमृत स्थान है उसे ब्रह्म का निवास स्थान कहा जाता है

      प्राणायाम विवेचन -

क्रिया

देवता

अन्यमत (देवता)

वर्ण

पूरक

ब्रह्मा

विष्णु

स्फटिक

कुंभक

विष्णु

ब्रह्मा

लाल और गौर (गोरा)

रेचक

रुद्र

रुद्र

श्वेत

o  प्राणायाम का प्रारंभ इडा से करना है

      जैसे प्राचीन काल में एक लकड़ी के ऊपर दूसरी लकड़ी मने से अग्नि उत्पन्न की जाती थी, उसी प्रकार आत्मा को नीचे वाली लकड़ी तथा प्रणव को ऊपर वाली लकड़ी बनाकर प्रणव का ध्यान रूपी मंथन रूपी मंथन के द्वारा ब्रह्म का साक्षात्कार किया जा सकता है

      जगत की सृष्टि, स्थिति, और प्रलय का कारण मन है। जब उस मन का विलय हो जाता है वह ब्रह्म का परमपद है

      तद्विष्णों परमं पदम्

      निरंजन परमात्मा की स्थिति का क्रम

8 पंखुड़ियों वाला कमल हृदय में स्थित

32 केसर

32 केसर से स्थित

सूर्य

सूर्य

शशि (चंद्रमा)

शशि

अग्नि

अग्नि

तेज

तेज

पीठ

पीठ के ऊपर निरंजन परमात्मा विद्यमान है

 

      स्थूल से सूक्ष्म की ओर ध्यान करना चाहिए।

      योग के 6 अंग


1.      आसन

2.      प्राणायाम

3.      प्रत्याहार

4.      धारणा

5.      ध्यान

6.      समाधि


      आसन - जीव की जितनी योनिया, उतनी ही आसान है जिनमें से 4 मुख्य है


1.      सिद्धासन

2.      भद्रासन

3.      सिंहासन

4.      पद्मासन


मूलाधार

4

स्वाधिष्ठान

6

मणिपुर

10

अनाहत (महाचक्र)

12

 

      मेढ्र से ऊपर और नाभि से नीचे कंद नामक स्थान है, जहां से 72000 नाडियां निकलती है, उनमें से 72 मुख्य है उनमें भी प्राण का संचरण करने वाली 10 नडियां हैं


1.      इडा - सोम देवता

2.      पिङ्गला सूर्य

3.      सुषुम्ना अग्नि

4.      गांधारी

5.      हस्तिजिह्वा

6.      पूषा

7.      यशस्विनी

8.      अलम्बुसा

9.      कुहु

10.  शंखिणी


      5 प्राण, 5 उपप्राण

      जीव प्राण, और अपान के वशीभूत होकर ऊपर नीचे दौड़ता है

      हंसज/आजपाजप

o  प्राण हं-बाहर, स-अंदर प्रवेश करता है इस प्रकार जीव सर्वदा हंस का उच्चारण करता है,पकी संख्या 21600 है इसे अजपा गायत्री भी कहते हैं

o  फल

  मोक्ष देने वाला,

  पाप को नष्ट करने वाला

      कुंडलिनी - कुंडलिनी को परमेश्वरी कहा है, वह सुषुम्ना के द्वार को अपने मुख से ढक कर सोई है उसे ग्नियोग/ह्नियोग के द्वारा जागृत किया जा सकता है जागृत होने के बाद वह प्राण और मन को अपने साथ ऊपर लेकर चलती है और मोक्ष का द्वार ह पूर्वक खोलती है

      1 वर्ष में सिद्धि प्राप्त करने वाले योगी के लक्षण -

o  प्राणायाम से उत्पन्न स्वेद को अपने शरीर पर मलने वाला

o  तीक्ष्ण, लवण, आम्(acid) को छोड़ने वाला (भोजन)

o  सुखी एवं ब्रह्मचारी

o  सुखी एवं मिताहारी

o  केवल दुग्ध का सेवन करने वाला

      मुद्रा

o  मूलबंध - अपान और प्राण की एकता

o  उड्यान - मृत्यु रूपी हाथी के लिए शेर के समान

o  जालंधर - कर्म और दुख के समूह का नाश करने वाली,

  अमृत का रक्षण

o  खेचरी - भ्रूमध्य पर दृष्टि

  रोग, मरण, भूख, प्यास और निद्रा परेशान नहीं करते

  बिंदु 2 प्रकार का होता है

पाण्डर

लोहित

शुक्र कहा जाता है

महारज कहा जाता है

चंद्रस्थान पर

योनि स्थान पर

इसे शिव और चंद्र कहा है

शक्ति और सूर्य

 

      रज और सूर्य का संयोग होने पर दिव्य शरीर और तेजस्वी शरीर की प्राप्ति होती है

      महामुद्रा - इसे पाकनाशिनी मुद्रा कहा जाता है

o  यह मल का शोधन करता है

o  चंद्र और सूर्य का मिलन

o  वात, पित्त, और कफ रसों का शोषण करती है

      आत्मा का विवेचन - हृदय स्थान में 8 पंखुड़ियों वाला एक कमल है उसमें आत्मा अणु रूप में निवास करती है वह सगुण है, (सर्वज्ञाता, सर्वकर्ता, भोक्ता, सुखी, दुखी, अंधा, बहरा इत्यादि गुणों से युक्त है)

      अलग-अलग कमल में उस जी के निवास करने पर वह अलग अलग कार्यों से युक्त हो जाता है

दल

वर्ण

कार्य

अष्टदल

श्वेत

भक्ति पूर्वक धर्म में बुद्धि

आग्नेय

रक्त

निद्रा, आलस्य

दक्षिण

काला

द्वेष और क्रोध

नैऋत

नीला

पापकर्म और हिंसा

पश्चिम

स्फटिक

क्रीडाविनोद

वायव्य

माणिक्य

चलना और वैराग्य

उत्तर

पीला

सुख और शृंगार

      मध्य भाग में बुद्धि होने पर गाना, नृत्य, पढ़ना इत्यादि क्रियाएं करता है

      4 अवस्थाओं के माध्यम से आत्म दर्शन -

      जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय अवस्थाओं से परे जब तुरियातीत अवस्था प्राप्त होती है तब सब आनंदरूप हो जाता है सभी द्वंद हट जाते हैंमोक्ष की प्राप्ति हो जाती है

      पंचमहाभूत और प्राण का विवेचन

प्राण

वर्ण

तत्व

बीज

प्राण

नीला

प्राण

अपान

आदित्य

अग्नि

व्यान

बन्धूक पुष्प के समान

पृथ्वी

उदान

शंख

जीव

समान

स्फटिक

आकाश

 

      समान प्राण 72000 नाडियों, 280000000 (28कोटी) रोम कूपों में विद्यमान है

      समान और प्राण अलग अलग नहीं है अपितु एक ही है

      नाद्वारा आत्मदर्शन - कंठ और लिंग का संकोच कर (जालंधर एवं मूलबंध) मूलाधार से होते हुए सुषुम्ना नाड़ी में वीणा के समान अमूर्त ना उत्पन्न होता है

o  जैसे शंख के द्वारा मध्यम ध्वनि निकल रही हो

o  ब्रह्म रंध्र रूपी शक्ति 2 धनुषों के मध्य विद्यमान हैं वहां पर मन का लय करके आत्मा का साक्षात्कार करना चाहिए जिससे वह कैल्य को प्राप्त करले, नाद स्वरूप में महेश्वर भी है

      अ, उ, म् के द्वारा ईश्वर को जानना विधि है

      सुषुम्ना नाड़ी का संकोचन (ड्यानबंध), वीणा से नाद ब्रह्मरंध्र में गमन करने वाला है, वहां ना मयूर पक्षी के आवा जैसी है