योगराजोपनिषत्
मन्त्रसंख्या
21
योग
के प्रकार - तत्वदर्शियों
द्वारा योग के
4 प्रकार
बताए गए हैं
प्रथम
दृष्टि |
द्वितीय
दृष्टि |
1. मन्त्र योग |
1. आसन |
2. लय योग |
2. प्राणसंरोध
(प्राणायाम) |
3. हठ योग |
3. ध्यान |
4. राज योग |
4. समाधि |
मंत्रयोग
ब्रह्मा,
विष्णु और शिव
का मंत्रों के
द्वारा जप
करें
o सिद्ध
करने वाले - वत्सराज
आदि
लययोग
- कृष्ण
द्वैपायन
व्यास ने
सिद्ध किया
हठयोग
- 9 चक्र
o ब्रह्मचक्र
आकृति 3 आवृत्त
(3 घेरे) भाग
(योनि) की
आकृति
अपान
स्थान में एक
कंध स्थित है,
जिसे कामरूप
होने के कारण
कुंडलिनी कहा
गया है
फल - ब्रह्मचक्र
का ध्यान करने
पर मुक्ति की
प्राप्ति
कामपीठ
o स्वाधिष्ठान
प्रवाल के
अंकुर के समान
उस कुंडली के
अंदर एकलिंग
स्थित है।
वहीं पर ही उड्यान
पीठ भी स्थित
है, उसमें लिंग
का ध्यान
करना चाहिए
लाभ जगत का
आकर्षण
o नाभिचक्र
इसके अंदर
संसार की
स्थिति कहीं
गई है, उस चक्र
के मध्य में 5
आवृत्ति
वाली विद्युत
शक्ति का
ध्यान करें
लाभ - सभी
सिद्धियों की
प्राप्ति
o चतुर्थचक्र
(अनाहत)
स्थान हृदय,
वहां हंस
रूपी ज्योति
का ध्यान करना
चाहिए
फल
- संपूर्ण
जगत् उसके
वशीभूत हो
जाता है
o कंठचक्र
इसके वाम
भाग में इडा,
दक्षिण भाग
में पिंगला, तथा मध्य
में सुषुम्ना
कहीं गई है
शुद्ध (शुचि)
ज्योति का
ध्यान करें
फल -
सभी
सिद्धियों की
प्राप्ति
o तालुचक्र
इसे घंटी
का स्थान भी
कहते हैं, और
इसे 10वें
द्वार का
मार्ग और राजदन्त
भी कहा जाता
है
वहां पर शून्य
का ध्यान
करें
फल -
मुक्ति की
प्राप्ति
o भ्रूचक्र
इसे बिंदु
स्थान भी कहते
हैं
गोलाकार (वर्तुल)
ज्योति का
ध्यान करें
फल
मोक्ष, मुक्ति
o ब्रह्मानंद
इसे परम
निर्वाण का
सूचक माना
जाता है
धूम्र ज्योति
का ध्यान करे
लाभ - मोक्ष की
प्राप्ति
यहां पर
जालंधर पीठ
मानी जाती है
o व्योनचक्र
16 दल वाला
पूर्ण
शक्ति
का ध्यान करें
फल
- मुक्ति
पूर्णगिरि
पीठ मानी जाती
है
जो
साधक इन 9
चक्रों का
क्रमशः ध्यान
करता है वह
मुक्ति सहित
सभी
सिद्धियों को
प्राप्त कर लेता
है
ऊर्ध्वशक्ति
के निपात से, अधःशक्ति
के संकोचन से
और मध्य शक्ति
के जागने से
परम सुख की प्राप्ति
होती है
ब्रह्म
लोक को
प्राप्त कर
लेता है