योगचूडामणि उपनिषत् नोट्स

योगचूडामणि उपनिषत्

योगचूडामणि उपनिषत्

      सामवेद

o  श्लोक 121

      प्रयोजन - कैवल की सिद्धि

      योग के अंग, उनका फल और क्रम

      योग के अंग 6

o  आसनं प्राणसंरोधः प्रत्याहारश्च धारणा ।
ध्यानं समाधिरेतानि योगाङ्गानि भवन्ति षट् ॥


o  आसन

o  प्राण संरोध

o  प्रत्याहार

o  धारणा

o  ध्यान

o  समाधि


      आसन

o  एकं सिद्धासनं प्रोक्तं द्वितीयं कमलासनम् ।

  सिद्धासन

  कमलासन (पद्मासन)

      निम्न चीजों को जानने पर योगी सिद्ध हो जाते हैं

o  षट्चक्रं षोडशाधारं त्रिलक्ष्यं व्योमपञ्चकम् ॥

  6 चक्र

  16 आधार

  3 लक्ष्य

  5 व्योम (आकाश)

      6 चक्र

चक्र का नाम

दल

स्थान

आधार

4

(मूलाधार)

स्वाधिष्ठान

6

मेढ्र (लिङ्ग)

मणिपुर

10

नाभि

अनाहत

12

हृदय

विशुद्ध

16

कण्ठ

आज्ञा

2

भ्रूमध्य

 

o  इसके अलावा ब्रह्मरंध्र में एक पद्मचक्र माना जाता है जिसके 1000 दल है

      मूलाधार चक्र और स्वाधिष्ठान चक्र के मध्य योनि (उत्पत्ति) स्थान हैं उसे कामरूप कहा गया है

      मेढ्र से ऊपर और नाभि से नीचे एक कंध स्थान हैं, उसमें पक्षी के अंडे के आकार वाली योनि (कुंडलिनी) स्थित है, वहां से 72000 नाडियों की उत्पत्ति होती है

      नाडिया

नाम

शरीर में किस स्थान पर खुलती है

देवता

इडा

वाम नासिका

सोम

पिङ्गला

दक्षिण नासिका

सूर्य

सुषुम्ना

दोनों के मध्य

अग्नि

गान्धारी

वाम चक्षु

 

हस्तिजिह्वा

दक्षिण चक्षु

 

पूषा

दक्षिण कर्ण

 

यशस्विनी

वाम कर्ण

 

अलम्बुसा

आनन (मुख)

 

कुहु

लिङ्ग प्रदेश

 

शंखिणी

मूल स्थान (गुदा स्थान)

 

 

       

प्राण

कार्य व स्थान

प्राण

हृदय

अपान

गुदा

समान

नाभि

उदान

कण्ठ

व्यान

संपूर्ण शरीर

नाग

उद्गार (डकार)

कूर्म

आंखों का उन्मीलन

कृकर

भूख (क्षुत्कर)

देवदत्त

विजृम्भण (उबासी)

धनन्जय

पूरे शरीर में व्याप्त है, मरने के बाद भी शरीर नहीं छोडता

 

      प्राण और अपान दोनों को वश में करना चाहिए, क्योंकि ये जीव को चंचल कर देते हैं।

      अजपाजप (हंस जप) बाहर वायु निकालने में हं की ध्वनि व अंदर वायु लेने में की ध्वनि उत्पन्न होती है, इस प्रकार जीव निरंतर हंस मंत्र का जप करता रहता है।

      1 दिन में 21600 बार

      लाभ

o  अजपानाम गायत्री योगिनां मोक्षदा सदा ।
अस्याः सङ्कल्पमात्रेण सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥

  मोक्ष प्रदान करने वाली

  सभी पापों को नष्ट करने वाली

      इसके समान कोई विद्या, ज्ञान और कोई जप न हुआ है, और न होगा।

      अजपा को गायत्री भी कहते हैं

      कुंडलिनी शक्ति

o  कंधे के ऊपर 8 फेरे लगाए हुए कुंडलिनी शक्ति विद्यमान है

o  यह ब्रह्म द्वार के मुख को अपने मुख से आच्छादित करके सोई हुई है

o  इसे अग्नि योग के द्वारा जगाना चाहिए

      अङ्गानां मर्दनं कृत्वा श्रमसंजातवारिणा ।

o  प्राणायाम करने से उत्पन्न पसीने को शरीर पर मल लेना चाहिए, इससे थकान दूर हो जाती है

      कट्वम्ललवणत्यागी क्षीरभोजनमाचरेत् ॥

o  कटु, अम्ल, लवण भोजन का त्याग और दूध का सेवन करना चाहिए

      मिताहार

o  सुस्निग्धमधुराहारश्चतुर्थांशविवर्जितः ।
भुञ्जते शिवसंप्रीत्या मिताहारी स उच्यते ॥

  मधुर हो

  चतुर्थांश छोड़कर हो

  शिव संप्रीति से हो

      मुद्रा -


o  महामुद्रा नभोमुद्रा ओड्याणं च जलन्धरम् ।
मूलबन्धं च यो वेत्ति स योगी मुक्तिभाजनम् ॥


  महामुद्रा

  खेचरी

  उड्यान

  जालंधर

  मूलबंध


      मूलबंध

o  लाभ

o  अपानप्राणयोरैक्यं क्षयान्मूत्रपुरीषयोः ।
युवा भवति वृद्धोऽपि सततं मूलबन्धनात् ॥

  अपान और प्राण की एकता

  मल मूत्र का कम होना

  वृद्ध युवा हो जाता है

      उड्यानबंध

o  ओड्डियाणं तदेव स्यान्मृत्युमातङ्गकेसरी ॥

o  लाभ

  मृत्युरूपी हाथी के लिए शेर के समान है

      जालंधर

o  जालन्धरे कृते बन्धे कण्ठसङ्कोचलक्षणे ।
न पीयूषं पतत्यग्नौ न च वायुः प्रधावति ॥

o  लाभ

  सिर से स्रावित नभोजल (अमृत) नीचे नहीं जाता है

  कष्ट और दुख का नाश करने वाला है

      खेचरी

o  न रोगो मरणं तस्य न निद्रा न क्षुधा तृषा ।
न च मूर्च्छा भवेत्तस्य यो मुद्रां वेत्ति खेचरीम् ॥
पीड्यते न च रोगेण लिख्यते न स कर्मभिः ।
बाध्यते न च केनापि यो मुद्रां वेत्ति खेचरीम् ॥

o  लाभ

  रोग, मरण, निद्रा, भूख, प्यास और मूर्छा बाधित नहीं करती है

  अमृत मंडल से स्रावित बिंदु की रक्षा होती है

  जिसके अंदर बिंदु स्थित है, उसे मृत्यु का भय नहीं होता

      बिंदु 2 प्रकार का होता है

स पुनर्द्विविधो बिन्दुः पाण्डरो लोहितस्तथा ।
पाण्डरं शुक्लमित्याहुर्लोहिताख्यं महारजः ॥
सिन्दूरव्रातसङ्काशं रविस्थानस्थितं रजः ।
शशिस्थानस्थितं शुक्लं तयोरैक्यं सुदुर्लभम् ॥
बिन्दुर्ब्रह्मा रजः शक्तिर्बिन्दुरिन्दू रजो रविः ।
उभयोः सङ्गमादेव प्राप्यते परमं पदम् ॥

पाण्डर

लोहित

इसे शुक्र भी कहते है।

महारज

स्थान शशि है

सूर्य

ब्रह्मा का प्रतीक

शक्ति

इन्दु का प्रतीक

रवि

      जो इनके संयोग को जानता है, वह योगवित् हो जाता है।

      महामुद्रा

o  शोधनं नाडिजालस्य चालनं चन्द्रसूर्ययोः ।
रसानां शोषणं चैव महामुद्राभिधीयते ॥

o  नहि पथ्यमपथ्यं वा रसाः सर्वेऽपि नीरसाः ।
अतिभुक्तं विषं घोरं पीयूषमिव जीर्यते ॥
क्षयकुष्ठगुदावर्तगुल्माजीर्णपुरोगमाः ।
तस्य रोगाः क्षयं यान्ति महामुद्रां तु योऽभ्यसेत् ॥
कथितेयं महामुद्रा महासिद्धिकरी नृणाम् ।

o  लाभ


  नाड़ियों का शोधन

  चंद्र और सूर्य का चालन

  रसों का शोषण

  अपथ्य पथ्य हो जाते हैं

  नीरस रस युक्त हो जाता है

  विश अमृत हो जाता है

  क्षय रोग, कुष्ठ, गुदावर्त, गुल्म और अजीर्ण, ये रोग नष्ट हो जाते हैं

v कुष्ठ - चर्म रोग

v क्षय टी.बी

v गुल्म पेट (intestine) में

v अजीर्ण - Indigestion

o  महामुद्रा चंद्र नाड़ी से शुरू करते हैं

      आत्मा आकाश वायु अग्नि जल पृथ्वी

      ब्रह्मा (उत्पत्ति), विष्णु (स्थिति) रुद्र (लय)

      4 स्वप्न अवस्थाएं

o  जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तितुरीयाश्चेत्यवस्थाश्चतस्रः

  जाग्रत

  स्वप्न

  सुषुप्ति

  तुरीय

      3 शरीर

o  स्थूल

o  सूक्ष्म

o  कारण

      4 पुरुष

o  विश्व

o  तेजस

o  प्राज्ञ

o  आत्मा

      ओ३म् की चर्चा

नेत्र

जाग्रत

विराट

स्थूल

राजस

ब्रह्मा

रक्त

उत्पत्ति

कण्ठ

स्वप्न

हिरण्यगर्भ

सूक्ष्म

सात्विक

विष्णु

शुक्ल

स्थिति

म्

हृदय

सुषुप्ति

पाज्ञ

अव्यक्त

तामसिक

रुद्र

कृष्ण

लय

 

भूः

भुवः

स्वः

सोम

सूर्य

अग्नि

 

      3 शक्तियां ब्राह्मी, रौद्री, वैष्णवी

      प्राण को हंस रूप कहा गया है, जो 26 अंगुल तक जाता है (GS. 12 अंगुल)

      नाड़ीशोधन

o  इडा से पूरक और पिंगला से रेचन

o  फिर पिंगला से पूरक और इडा से रेचन करनी है से

o  2 महीने में नाड़ी शुद्धि हो जाती है

      रेचक, पूरक और कुंभक को प्रणव स्वरूप कहा गया है

      12 मात्रा वाला प्राणायाम सभी दोषों को दूर कर देता है

o  (12:16:10 ratio)

      इसे ओंकार प्राणायाम भी कहा जाता है

o  ओंकार प्राणायाम की 3 स्थितियां

  अधम स्थिति - 12 मात्रा (स्वेद उत्पन्न होता है)

  मध्यम स्थिति - 24 मात्रा (कंपन होता है)

  उत्तम स्थिति - 36 मात्रा (स्थान को प्राप्त हो जाता है)

      योग के 6 अंगों का फल

आसनेन रुजं हन्ति प्राणायामेन पातकम् ।
विकारं मानसं योगी प्रत्याहारेण मुञ्चति ॥
धारणाभिर्मनोधैर्यं याति चैतन्यमद्भुतम् ।
समाधौ मोक्षमाप्नोति त्यक्त्वा कर्म शुभाशुभम् ॥

आसन

रोगों का नाश

प्राणायाम

पातक (पाप) का नाश

प्रत्याहार

(मानस) मन के विकारों का नाश

धारणा

मनोधैर्य प्राप्त

ध्यान

 

समाधि

मोक्ष प्राप्त होता है

 

      योग के अंगों में किसे करने से क्या प्राप्त होता है?

o  12 प्राणायाम से (द्विषट्क से) प्रत्याहार सिद्धि

o  12 प्रत्याहार से धारणा

o  12 धारणा से ध्यान

o  12 ध्यान से समाधि

      गलत प्राणायाम से

o  हिक्का कासस्तथा श्वासः शिरःकर्णाक्षिवेदनाः ।
भवन्ति विविधा रोगाः पवनव्यत्ययक्रमात् ॥

  हिचकी (हिक्का), कास (खांसी), श्वास (दमा),

  सिर, कान, और आंखों में पीड़ा उत्पन्न हो जाती है

      प्रत्याहार परिभाषा

o  चरतां चक्षुरादीनां विषयेषु यथाक्रमम् ।
यत्प्रत्याहरणं तेषां प्रत्याहरः स उच्यते ॥

  चक्षु इत्यादि इंद्रियों को अपने विषयों से खींच लेना प्रत्याहार है

      इसमें कुछ कुछ नाद की चर्चा भी आती है

      पूरक रेचक और कुंभक को अच्छी तरह से करना चाहिए

      नाड़ीशोधन प्राणायाम -

o  यथेष्टधारणं वायोरनलस्य प्रदीपनम् ।
नादाभिव्यक्तिरारोग्यं जायते नाडिशोधनात् ॥

o  लाभ -

  धारणा करने की क्षमता बढ़ जाती है

  दिव्य नाद सुनाई देता है

  जठराग्नि प्रदीप्त होती है