योगबीज
(योगशिखोपनिषत्
के समान)
शिव और पार्वती
का संवाद
योगबीज
योग का सार
ग्रंथ के
प्रारंभ में आदिनाथ
शिव को प्रणाम
किया गया है
उन्हे
सृष्टि का उत्पत्ति,
स्थिती, और
संहारकर्ता,
क्लेशों
को हरण करने
वाला,
आनंद
देने वाला आदि
कहा गया है
प्रश्न
(पार्वती) - सुख
और दुःख से
निवृत्ति का
जो मोक्ष
मार्ग है उसका
उपदेश दीजीए।
उत्तर
(शिव) वह मार्ग
सभी
सिद्धियों को
प्रदान करने
वाला, जन्म-मृत्यु,
जरा-व्याधि
दूर करने वाला,
मोक्ष देने
वाला तथा
अज्ञान रूपी
माया को हरण
करने वाला है।
अनेक
प्रकार के
मार्गों से वह
कैवल्य पद
प्राप्य नहीं
है, उसे
प्राप्त करने
का मार्ग है सिद्धि
(नाथ) मार्ग (योग
मार्ग)।
ईश्वर की
विशेषता - अनिर्वचनीय
है, उसके बारे
में शास्त्र
और देवता भी
कोई कथन नहीं
कर सकते।
o
स्वात्मप्रकाशरूप
अपने प्राकाश
से प्रकाशित
है।
o
निष्कल अखण्ड
है, कलाओं से
रहित है।
o
निर्मल
o
शान्त
o
सर्वातीत
o
निरामया सभी
रोग से रहित
है।
जीव का
स्वरूप ऊपर
कहे गए सभी
गुणों से
युक्त
परमात्मा जब
पाप और पुण्य
के फल से
युक्त/आवृत हो जाता
है तब उसे ही
जीव कहते हैं (अद्वैतवाद).
पार्वती - नित्यस्वरूप
वाला
परमात्मा जीव
भाव को कैसे
प्राप्त हो
जाता है?
शिव - निरंजन
परमात्मा में
एक स्फुरण जिससे
अहंकार
प्रकट हुआ, अहंकार
के उदय के
पश्चात् पंचमहाभूतों
से युक्त पिंड
उत्पन्न हुआ,
जो 7 धातुओं और 3
गुणों (सत्व,
रज, तम) से
युक्त है उसी
को हम जीव
कहते हैं।
जीव
के गुण
काम, क्रोध,
चिंता, लोभ
इत्यादि जरा-मृत्यु,
सुख-दुख, मोह, जाग्रत,
स्वप्न,
सुषुप्ति आदि
इन सब
विशेषताओं से
युक्त जीव है।
इन
दोषों से
मुक्त होने पर
वह जीव शिवस्वरूप
ही है।
योगहीन
ज्ञान (योग से
रहित) या ज्ञान
से रहित योग
मोक्ष
प्राप्त
कराने में
समर्थ नहीं
हैं।
मोक्ष
की प्राप्ति
के लिए दोनों
का आचरण अनिवार्य
है।
पार्वती अज्ञान
से ही संसार
है और ज्ञान
से ही मोक्ष है ऐसा
मैंने
योगियों
द्वारा सुना
है,
तो मोक्ष की
प्राप्ति के
लिए योग की
आवश्यकता
क्या है?
शिव - ज्ञान
का स्वरूप
क्या है?
परमात्मा
के कैवल्य
स्वरूप को
विचार करना, परंतु
जिसने इस
ज्ञान को
प्राप्त कर
लिया है क्या
वह काम,
क्रोध
इत्यादि से
मुक्त हो जाता
है?
अर्थात् नहीं
होता। सभी
दोषों से आवृत
वह जीव है,
जिसकी केवल
ज्ञान से
मुक्ति नहीं
हो सकती।
पार्वती - यदि
काम, क्रोध
इत्यादि दोष
जीवात्मा के
स्वरूप गुण है
तो उनका विधि
और निषेध/निवृत्ति
कैसे सम्भव
होपायेगा?
शिव विना
योगेन
देवोऽपि न
मोक्षं लभते
प्रिये ।
पार्वती - ज्ञानी
व्यक्ति के
लिए आत्मा
निष्कल और
निर्मल है, इस ज्ञान के
अलावा कुछ भी
जानने योग्य
नहीं रह जाता
है, उसे मोक्ष
की प्राप्ति
क्यों नहीं
होती है?
शिव - व्यक्ति
दो प्रकार (ज्ञानी)
के होते हैं
अपक्व
- योग
हीन व्यक्ति,
जो योग का
आचरण नहीं
करते हैं।
परिपक्व
- परिपक्व व्यक्ति
योग रूपी
अग्नि के
द्वारा अजड़ (चेतनायुक्त)
हो जाते हैं।
अपक्व
व्यक्ति
इंद्रियों के
वशीभूत होता
है, सर्दी-गर्मी
इत्यादि
द्वंद्वों से
पीड़ित होता
है, प्राण को
नियंत्रित
नहीं कर पाता
है, जिसके
कारण वह
सैकड़ों
प्रकार के दुख
से युक्त हो
जाता है या
दुख झेलता है।
o
अतः ज्ञान,
वैराग्य, जप
मोक्ष
प्राप्ति के
लिए केवल भ्रम
है।
इसलिए
जिस व्यक्ति
का अहंकार
नष्ट हो जाता
है उसका शरीर
होते हुए भी
नष्ट प्राय
होता है।
(अहंकार
- शरीर के होने
का भाव)
o उसे शस्त्र,
अस्त्र, अग्नि
इत्यादि का
प्रभाव
पीड़ित नहीं
कर पाते।
o अहंकार के
नष्ट होने पर
योगी के अंदर
शम, दम
इत्यादि गुण
उत्पन्न होने
लगते हैं।
(अहंकार
का नाश - मोक्ष)
पार्वती - जिन (परिपक्व)
योगियों का आपने
वर्णन किया है,
उनका हमारे
साथ और हमारा
उनके साथ किस
प्रकार का
व्यवहार होना
चाहिए? योगीयों को
देहावसान किस
प्रकार होता
है?
शिव - योगीयों
की विशेषता -
o उन्होंने
शरीर को जीत
लिया है,
जिससे उन्हें
सुख दुख का
अनुभव नहीं
होता
o उन्होंने
इंद्रिय, मन,
बुद्धि, काम-क्रोध
को जीत लिया
है
o पंचमहाभूतों
पर नियंत्रण
प्राप्त कर
लिया है
ऐसा शरीर
देवों को भी
प्राप्त नहीं
होता। वह योगी
आकाश से भी
अधिक निर्मल,
सूक्ष्म से भी
सूक्ष्म, स्थूलों
से भी स्थूल
और जड़ से भी
जड़ (दृढ़) है।
योगीराज
तीनों लोकों
में
स्वतंत्रता
से विचरण करता
हुआ स्वाधीन
होकर लोगों के
साथ व्यवहार
करता है। जिस
स्थिति में
जनसामान्य
जीते हैं उस
स्थिति के
आधार पर योगी
मृत्यु को
प्राप्त कर
चुका है।
(शरीर भाव
पहले ही त्याग
हो चुका है).
पार्वती ज्ञानीजन
की मृत्यु के
बाद क्या गति
होती है?
शिव (जो शरीर
भाव से युक्त हैं,
उनके लिए)
ज्ञानी
व्यक्ति पाप
और पुण्य के
अनुसार मृत्यु
के पश्चात्
सुख और दुख का
अनुभव करते
हैं।
या पुण्य
कर्म के
प्रभाव से
सिद्ध
पुरुषों की कृपा
को प्राप्त
करते हैं। (सिद्ध-योगी).
पार्वती - ज्ञान से
ही मोक्ष होता
है, अन्य किसी
उपाय से नहीं,
ऐसा मैंने
सुना है।
शिव - ज्ञान से
ही मोक्ष होता
है यह कथन
असत्य नहीं है,
परंतु यह कथन तलवार से
युद्ध जीता
जाता है
इसके समान है।
योगात्परतो
नास्ति
मार्गस्तु
मोक्षदः
योग से
श्रेष्ठ और
कोई मार्ग
नहीं है,
जिससे मोक्ष
की प्राप्ति
हो सके,
क्योंकि योग
से एक जन्म
में ही मोक्ष
प्राप्त किया
जा सकता है और
ज्ञान के
द्वारा अनेक
जन्मों में भी
मोक्ष प्राप्त
नहीं किया जा
सकता/नहीं
होता।
पार्वती - ज्ञान के
द्वारा अनेक
जन्मों में
योग की
प्राप्ति और
योग के द्वारा
एक जन्म में
ही ज्ञान और
मोक्ष
प्राप्ति हो
जाती है, इसका
क्या प्रमाण
है?
शिव मैं
ब्रह्म ही हूं इस प्रकार
का ज्ञान
प्राप्त करने
के पश्चात्
व्यक्ति मैं
मुक्त हूं ऐसा मानने
लगता है।
लेकिन क्या यह
मानने मात्र
से मोक्ष को
प्राप्त हो
जाता है? इसलिए
सैकड़ों
जन्मों के
पश्चात्
ज्ञानी
व्यक्ति योग
को प्राप्त
करता है, फिर मोक्ष
को प्राप्त
करता है।
कारण - प्राण और
अपान का संयोग
होने से,
चंद्रमा और
सूर्य की एकता
हो जाती है,
जिससे 7
धातुओं से
युक्त यह शरीर
अग्नि के द्वारा
प्रदीप्त
होने से
पूर्णतः
शुद्ध हो जाता
है।
परिणामस्वरूप
शरीर का भाव
जीर्ण होने
लगता है।
और वह
योगी परम-आकाश
रूप हो जाता
है।
(तीन
ग्रंथियों को
भेदकर महाशून्य
की स्थिति)
वह शरीर
जले हुए कपड़े
के समान हो
जाता है।
मन को
नियंत्रित
करने का उपाय
प्राण जाय है।
प्राण
को नियंत्रित
करने का उपाय -
अनेक
प्रकार के
शास्त्रों को
पढ़ने या
मंत्र और
औषधियों का
प्रयोग कर
प्राण को वश
में नहीं किया
जा सकता, जिस
को वश में किए बिना
योग में सफल
होना संभव
नहीं है।
उदाः- कच्चे
घड़े को लेकर
समुद्र पार
करना।
प्राणायाम
के द्वारा
प्रणों का लय/नियंत्रण
संभव है, जिससे शरीर
का पात (नष्ट)
नहीं होता और
सभी दोष नष्ट
हो जाते हैं।
पार्वती - योग क्या
है? इसका अभ्यास
किस प्रकार
किया जाता है? इसके लाभ
क्या हैं?
शिव -
प्राण और अपान, रज और वीर्य,
सूर्य और
चंद्रमा,
जीवात्मा और
परमात्मा, इनके
संयोग
को योग कहा
जाता है।
o योगाभ्यास
का लक्षण
1
वितस्ति लंबा
और 4
अंगुल चौड़ा
मृदु और
धवल (सफेद)
वस्त्र को,
प्राणायाम की
साधना के लिए
उपयोग किया
जाना चाहिए।
वायु
का निरोध
करने के पश्चात् 8 फेरे
लगाई कुंडली
को ऋजु
(सीधा/कोमल) करने के लिए
नाभि का आकुञ्चन
करें,
पश्चात्
कुंडलिनी
चालन करें।
इसे शक्तिचालन
कहते हैं।
इस
प्रक्रिया को वज्रासन
(सिद्धासन) में 15 दिन
तक अभ्यास
करने से शक्तिचालन
का अभ्यास हो जाता है। 7 मास तक
अभ्यास करने
पर कुंडलिनी
जागृत होकर
सुषुम्ना में
प्रविष्ट हो
जाती है। इसे ब्रह्म
ग्रंथि भेदन
कहा जाता है,
जिसके पश्चात्
क्रमशः
विष्णु एवं
रुद्रग्रन्थी
का भेदन करना
होता है।
प्राणायाम
(कुम्भक)
o केवल
o सहित 4 प्रकार है
-
a.
सूर्यभेद
b.
उज्जयी
c.
शीतली
d.
भस्त्रिका
यदि
इन 4 कुंभक
को 3
बंधों के
साथ किया जाए
तो केवल कुंभक
प्राप्त होता है।
सूर्यभेदी
पिङ्गला
से पूरक,
कुम्भक, इड़ा
से रोचक
o लाभ उदर के
वात संबन्धी
दोष और कण्ठ
दोषों का नाश।
उज्जायी दोनो
नासिका से पूरक,
कुम्भक, इड़ा
से रेचक
o लाभ
कण्ठ के
कफ दोष का नाश,
शरीराग्नि
प्रदीप्त,
शिर के रोग,
जलोदर एवं
धातुगत दोषों
का नाश.
शीतली मुख से
पूरक, नासिका
से रेचन
o लाभ पित्त
एवं ज्वर दोष।
भस्त्रिका
लौहकार
की भॉति रेचन-पूकर,
थकान होले पर
सूर्यभेदी
o लाभ
त्रिदोष-नाश,
शरीर
अग्नि
प्रदीप्त,
कुंडलिनी
जागरण,
चक्र
जागरण,
भावघ्न (वासनाओं
का नष्ट होना),
सुख और
कल्याण के
प्राप्ति,
ब्रह्मनाड़ी
के मुख पर
स्थित कफ का
नाश,
तीनों
ग्रंथियों का
भेद,
अनेक
रोगों का नाश।
बन्ध
मूलबन्ध
o लाभ प्राण-अपान,
नाद-बिन्दु की
एकता।
उड्ड्यान
बन्ध - इसे
कुंभक के अंत
में और रेचन
के प्रारंभ
में करते है।
o लाभ
वृद्ध भी
युवा
हो जाता है,
6 महीने में
मृत्यु को जीत
लेता है।
जालंधर
बंध - पूरक
के अंत में
करना चाहिए
o लाभ - अमृत के
व्यय को रोकता
है
वज्रासन
में कुंडलिनी
चालन करने पर,
पश्चात्
भस्त्रिका
प्राणायाम
करें। इससे
कुंडलिनी
जागरण शीघ्र
हो जाता है।
रुद्र
ग्रंथि का भेदन
होने से वह शिवस्वरूप
हो जाता है।
जिससे
चंद्रमा और
सूर्य का एक
ही भाव होता
है और पूर्ण
योग की
प्राप्ति
होती है। उस
स्थिति में
शिव और शक्ति (कुंडलिनी)
का संयोग होने
से परम स्थिति
की प्राप्ति
होती है।
सुषुम्ना
नाड़ी
मेरुदंड के
अंदर पाए जाने
वाले 21 मणियों
के लिए सूत्र
का कार्य करती
है।
सिद्धि के
अंतिम द्वार
को पश्चिम
द्वार कहा
गया है। कुल 9 द्वार
हैं।
4 प्रकार
के योग
o मन्त्र
योग
o हठ योग
o लय योग
o राज योग (महायोग)
मंत्र योग - हकार से
प्रश्वास, सकार
से श्वास।
इसका जप करना
ही मंत्र योग
है। अथवा इसका
उल्टा जप करने
पर सोऽहम्
बनता है यह भी
मंत्र योग है।
हठयोग हकार सूर्य,
ठकार
चंद्रमा का
संयोग हठयोग
है।
लययोग - जीव
क्षेत्र, परमात्मा
क्षेत्रज्ञ (क्षेत्र
के जानने वाला)
इनकी एकता या
संयोग लययोग
है।
राजयोग - प्रत्येक
प्राणी के
योनि स्थान
में एक महाक्षेत्र
पाया जाता है,
जिसमें रजस्
पाया जाता है।
जिसे
देवीतत्व
कहां जाता है।
रजस् और रेतस्
का सहयोग होना
ही राजयोग है।
o लाभ - अणिमादि
सिद्धियों की प्राप्ति।
पार्वती - काक मत और
मर्कट मत में
क्या अंतर है?
शिव
o मर्कट मत - योगी
धीरे-धीरे
अभ्यास करते
हुए यदि एक
जन्म में ही
सिद्धि को
प्राप्त करे
उसे मर्कट
क्रम कहते हैं।
o काक मत -
पूर्वजन्म के
किए गए
योगाभ्यास के
परिणाम
स्वरूप शीघ्र
ही मोक्ष को
प्राप्त करना
काक मत कहलाता
है।