श्वेताश्वतरोपनिषत् नोट्स

श्वेताश्वतरोपनिषत्

श्वेताश्वतरोपनिषद्

      कृष्ण यजुर्वेद

o  6 अध्याय, 113 मंत्र

      ब्रह्म की चर्चा

      इसमें श्वेताश्वतर ऋषि के द्वारा दिया गया उपदेश हैं

 

द्वितीय अध्याय

      इसमें सविता देव की उपासना की गई है, जिसमें प्रार्थना की गई है की वह सविता देव मेरे मन और इंद्रियों को विवेक शक्ति प्रदान करें, जिससे हम परमात्मा/ब्रह्म को प्राप्त कर सके

      श्रुण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्रा॥ विश्व के लोगों, अमृत/ब्रह्म के पुत्रों सुनो।

      अग्नि जहां से पैदा होती है, वायु जहां पर जाकर रुक जाता है, सोम का जहां से स्राव होता है, वहां पर मन को स्थिर करना चाहिए ब्रह्म

      ध्यान में शरीर की स्थिति - 3

o  छाती, ग्रीवा, मस्तिष्क को उन्नत रखना।

o  शरीर को सीधा रखना

o  मन के द्वारा इंद्रियों को अंतर्मुखी करना

      इन तीनों का आचरण करते हुए ब्रह्म रूपी उडुपी (नाव) के द्वारा संसार रूपी सागर से विद्वान तर जाता है।

      प्राणायाम - प्राणायाम प्रारंभ करने से पहले अपनी सभी चेष्टा और क्रियाओं को संयोजित (नियंत्रित) कर लेना चाहिए

o  उसके पश्चात् प्राणों के क्षीण होने तक उनका पीड़न (निरोध) करना चाहिए(आभ्यन्तर कुंभक)

o  उसके बाद नासिका से उसे बाहर निकाल देना चाहिए

      इन सबके करने से वह प्राण को उद्दंड अश्व की भॉति नियंत्रित करता है

      ध्यान का स्थान

o  सम ऊंचा, नीचा, ना हो

o  शुचि पवित्र स्थान हो

      जो नही होना चाहिए (forbidden)

o  शर्करा कंकड

o  वह्नि अग्नि

o  वालुका रेत

o  शब्द अत्यधिक शोर न हो, (मधुर शब्द हो)

o  जलाशय

o  चक्षुपीडन आंखों को पीडा देने वाला

      जो होना चाहिए (recommended)

o  मनोनुकूल मन के अनुकूल

o  निवात वायु रहित

      ऐसे स्थान पर बैठकर ही मन को परमात्मा के साथ जोड़ना चाहिए

 

      ब्रह्मा की अभिव्यक्ति कराने वाले कारक

o  योग सिद्धि के पूर्व लक्षण


  निहार ओस

  धूम धुआँ

  अर्क सूर्य

  अनल अग्नि

  अनिल वायु

  खद्योत जुगनू

  विद्युत

  स्फटिक मणि

  शशि चंद्रमा


 

      ध्यान करने पर प्राप्त सिद्धियां

o  कोई रोग, जरा (बुढापा), मृत्यु नहीं होगी

o  योगी का शरीर अग्निमय (चमक वाला) होता है

o  शरीर में लघुता (हल्कापन)

o  आरोग्यता

o  लोलुपता (विषयों के प्रति आसक्त ना होना)

o  वर्णप्रसाद (color fair होना)

o  स्वरसौष्ठव (वाणी में मधुरता)

o  शरीर की गंध अच्छी हो जाएगी

o  मल मूत्र कम हो जाना

      यह योगी की प्रथम लेवल की सिद्धि कही जाती है

      जैसे मिट्टी से ढका हुआ सोने का टुकड़ा मिट्टी हटने के बाद प्रदीप्त हो जाता है, उसी दीपक के समान स्वयं प्रकाशित होता हुआ ब्रह्म तत्व का साक्षात्कार करता है

      तत्वजय - तत्व को जानने वाला

 

षष्ठ अध्याय (6)

      ब्रह्म की चर्चा

      जगत की उत्पत्ति के प्रचलित मत

o  स्वभा ही प्रकृति की उत्पत्ति का कारण है

o  काल प्रकृति की उत्पत्ति का कारण है

      स्वीकार्यमत - प्रकृति की उत्पत्ति का कारण देव(ब्रह्म) है

 

      ब्रह्म की चर्चा - परमेश्वर का स्वरूप

o  संपूर्ण संसार उससे व्याप्त है

o  वह सर्वज्ञ हैं

o  काल का निर्माण करने वाला।

o  गुणी है

o  उसकी प्रेरणा से ही पांचों महाभूत कार्य करते हैं

o  वह आदि है

o  संयोग (शरीर और आत्मा का) का कारण ब्रह्म है

o  3 कालों से परे है

o  वह अला है, कलाओं से रहित है

o  संसार रूपी वृक्ष, काल और आकृति से परे हैं

o  धर्मप्र (धर्म को देने वाला) है

o  पापनुद (पाप को नष्ट करने वाला) है।

o  भगेश - सभी ऐश्वर्या का स्वामी है

o  सभी ईश्वरों का भी महेश्वर है।

o  सभी देवों का भी परमदेव है

o  सभी स्वामीयों का भी स्वामी है

o  उसका कोई कार्य और कारण नहीं है

o  सम भी कोई नहीं उसके, अधिक भी कोई नहीं है

o  उसका ज्ञान और बल स्वाभाविक है

o  उसका कोई स्वामी और शामक नहीं

o  उसका कोई लिंग (चिह्न) भी नहीं है

o  उसका कोई जनिता (उत्पन्न करने वाला) नहीं है

o  सभी प्राणियों का अंतरात्मा है

o  सभी कर्मों का अधिष्ठाता (अध्यक्ष) है

o  साक्षी है, वह शुद्ध और निर्गुण है, एक है, अद्वितीय है

o  नीत्यों में नित्य है, चेतनाओं में चेतन है

o  विश्वकृत् (संपूर्ण संसार को बनाने वाला) है।

o  विश्ववित् (सबकुछ जानने वाला) है।

o  काल का भी काल है

o  संसार, मोक्ष और बंधन का हेतु है

o  अमरधर्मा है, संसार का रक्षक है

o  निष्कल (कलाहीन), निष्क्रिय है

o  शांत है, निरंजन (निर्लिप्त) है

o  अमृत का सेतु है

o  उसको सांख्य और योग के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है

o  न तत्र सूर्य चंद्र....। तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति।

o  जो भी चमकीले पदार्थ हैं वे भी उसी के चमक से हैं

o  संपूर्ण भुवन में एक वही हंस है, जिसको जानकर मनुष्य मृत्यु को पार कर लेता है

o  उसके अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं है, ईश्वर को जानकर ही मृत्यु पार करना है

      किन व्यक्ति को ब्रह्म का उपदेश नहीं करना चाहिए -

o  अशांत

o  पुत्र (पुत्रवत् व्यवहार नहीं करते)

o  शिष्य

      किन्हे करना चाहिए -

      जिसकी देव (ब्रह्म) में परा भक्ति है, उसी प्रकार गुरु के प्रति भी भक्ति है